चैत्र नवरात्रि आज से आईए जानते हैं संस्कृत में नवरात्रि शब्द का अर्थ
सिहोरा…नवरात्रि भारत में सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक माना जाता है। संस्कृत में ‘नवरात्रि’ शब्द का अर्थ है ‘नौ रातें’, और यह हिंदू देवी दुर्गा और उनके नौ अवतारों – मां दुर्गा, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, मां की पूजा के लिए समर्पित त्योहार है। साथ ही गौरी और सिद्धिदात्री की भी पूजा की जाती है।


नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा के उन रूपों की पूजा करने के लिए समर्पित हैं, जो एक उग्र और शक्तिशाली हैं, जो बुराई से लड़ती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं अगले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं, जो अपने भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक धन का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शेष तीन दिन ज्ञान, शिक्षा और कला की देवी , देवी सरस्वती को समर्पित हैं, जो अपने भक्तों को ज्ञान और रचनात्मकता का आशीर्वाद देती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है।
चैत्र प्रतिपदा के साथ ही नवसंवत्सर पिङ्गल की शुरुआत होगी। नवसंवत्सर के राजा मंगल और मंत्री शनि होंगे। हृषीकेश पंचांग के अनुसार, संवत 2081 में आठ अप्रैल को सोमवार की रात्रि में 11:55 बजे चैत्र प्रतिपदा तिथि शुरू होगी और नौ अप्रैल को रात्रि 9:43 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा का व्रत नौ अप्रैल को रखा जाएगा।
चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना का मुहूर्त सुबह 8:09 बजे से प्रारम्भ होकर 10:23 बजे तक रहेगा। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना हो सकती है। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:36 बजे से 12:24 बजे तक रहेगा। इस बार चैत्र नवरात्रि पर तीन राजयोग शश योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है। नौ अप्रैल को अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग दोनों ही साथ पड़ रहे हैं। दोनों ही शुभ योग नौ अप्रैल को सुबह 8:09 बजे से लेकर पूरे दिन रहेगा।
पञ्चाङ्ग के अनुसार इस साल नवरात्रि का आरंभ 9 अप्रैल मंगलवार से हो रहा है। इसलिए मां दुर्गा का वाहन अश्व यानी कि घोड़ा होगा। मां दुर्गा की घोड़े पर सवारी को आने वाले साल के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है। शास्त्रों की मानें तो अगर नवरात्र में मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आती हैं, तो इसे छत्रभंगे स्तुरंगम कहा जाता है। मां दुर्गा के वाहन को शुभ नहीं माना जाता है। मां दुर्गा के इस वाहन से यह संकेत मिलते हैं कि आने वाले वक्त में सत्ता में कुछ बदलाव होने वाला है। साथ ही युद्ध का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा के घोड़े पर सवार होकर आने से प्राकृतिक आपदा की संभावना बढ़ सकती है।
● नवदुर्गा के स्वरूप
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
1. शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ अथवा अपरा प्रकृति से उत्पन्न यह भगवती का पहला स्वरूप हैं। मिट्टी(पत्थर), जल, वायु, अग्नि व आकाश इन पंच तत्वों पर ही निर्भर रहने वाले जीव शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ अर्थात कण-कण में परमात्मा के प्रकटीकरण का अनुभव करना। योनि चक्र के तहत घास, शैवाल, काई, पौधे इत्यादि शैलपुत्री हैं।
2. ब्रह्मचारिणी- जड़(अपरा) में ज्ञान(परा) का प्रस्फुरण के पश्चात चेतना का वृहत संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। यह जड़ चेतन का जटिल संयोग है। प्रत्येक वृक्ष में इसे देख सकते हैं। सैंकड़ों वर्षों तक पीपल और बरगद जैसे अनेक बड़े वृक्ष ब्रह्मचर्य धारण करने के स्वरूप में ही स्थित होते है।
3. चन्द्रघण्टा- भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में आवाज (वाणी) तथा दृश्य ग्रहण व प्रकट करने की क्षमता का प्रादुर्भाव होता है। जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।
4. कूष्माण्डा- अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री और पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है। मनुष्य योनि में स्त्री और पुरुष के मध्य इक्षण के समय मंद हंसी(कूष्माण्डा देवी का स्व भाव) के परिणाम स्वरूप जो आकर्षण और प्रेम का भाव उठता है वो भगवती की ही शक्ति है। इनके प्रभाव को समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।
5. स्कन्दमाता- पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
6. कात्यायनी- के रूप में वही भगवती माता-पिता की कन्या हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।
7. कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं, अपरा और परा विभक्त हो जातें है। मन की मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप परा प्रकृति होने के कारण सुलभ नहीं है।
8. महागौरी- भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी जगत की कालिख वृति न रहने के कारण गौर वर्ण का परम शुद्ध व परम पवित्र है।
9. सिद्धिदात्री- भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है। इसमें शक्ति स्वयं शिव हो जाती है, पार्वती स्वयं शंकर हो जाती है और राधा स्वयं कृष्ण हो जाती है। आत्मा अर्थात जीवात्मा अपने परम स्थिति में परमात्मा हो जाती है। शक्ति, पार्वती, राधा व जीवात्मा एक है। शिव, शंकर, कृष्ण व परमात्मा एक है। भगवान अर्धनारीश्वर है। सब उनमें ही ओत-प्रोत है, सबकुछ वो है, अलग कोई नही।
दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं।
(1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है।
(3) चन्द्रघण्टा (चन्दुसूर) : यह एक ऐसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं।
(4) कूष्माण्डा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है।
(5) स्कन्दमाता (अलसी) : देवी स्कन्दमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है।
(6) कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।
(7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
(8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है।
(9) सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।
*हिंदू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं*