पितरो के आशीर्वाद से ही सांसारिक उन्नति संभव …..

सिहोरा……पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का पवित्र काल है भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है इस दौरान पितरों का स्मरण तर्पण और श्राद्ध कर्म यज्ञ के समान फल देने वाले माने जाते हैं हालांकि समाज में कुछ भ्रांतियां प्रचलित हैं की पितृपक्ष में नए कार्य शुरू करना, खरीदारी करना, मंदिर जाना या पूजा-पाठ करना अशुभ है विद्वानों के अनुसार, धर्मशास्त्रों में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है बल्कि, यह काल पितरों के आशीर्वाद से धन-धान्य, सम्मान और संतान की प्राप्ति के लिए अत्यंत पुण्यदायी
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय काशी के साहित्य, ज्योतिष छात्र अखिल भारतीय पौराणिक पथ के राष्ट्रीय सदस्य दिव्याकर्षण त्रिपाठी बताते हैं की पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान और दान जैसे कर्म यज्ञतुल्य फल देते हैं कुछ लोग इस काल को मरणाशौच की तरह अपवित्र मानकर मंदिर जाना, नित्य पूजा, व्रत-उपवास, नए वस्त्र या आभूषण, मकान, वाहन, टीवी, फ्रीज खरीदना या नया कार्य शुरू करना अशुभ मानते हैं धर्मशास्त्रों में इसे पुण्यप्रद काल कहा गया है ‘कन्यस्थार्कान्वितः पक्षः सः अत्यन्तं पुण्यमुच्यते’ अर्थात् पितृपक्ष पितरों के पूजन का विशेष समय है, जिसमें नित्य कर्मों के साथ-साथ पितृ पूजा का विशेष महत्व है इस दौरान खरीदारी या नए कार्यों पर कोई रोक नहीं है श्रीकाशी विद्वत परिषद के सदस्य भी कहते हैं की आधुनिक भौतिक युग में पितृपक्ष का महत्व और बढ़ जाता है शास्त्रों के अनुसार, भौतिक सुख, संसाधन और वंश वृद्धि पितरों के संतृप्त होने पर ही संभव है तर्पण और श्राद्ध से पितृ संतुष्ट रहते हैं जिससे ‘पितरि प्रीतिमायान्ते प्रीयन्ते सर्व देवता।’ अर्थात् पितरों की प्रसन्नता से सभी देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं इससे मनुष्य पितृ ऋण से मुक्त होकर धन, संतान और समृद्धि प्राप्त करता है ख्यात ज्योतिषाचार्य पितृपक्ष में जीवन-यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं जैसे भोजन, वस्त्र आदि की खरीदारी पर कोई रोक नहीं है यदि इनका क्रय न किया जाए तो जीवन की गति बाधित हो सकती है इस काल में सात्विक जीवनशैली अपनाते हुए, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए और गलत कार्यों से बचते हुए पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करनी
चाहिए उनके आशीर्वाद से ही सांसारिक उन्नति संभव है।


